बहुत समय पहले की बात है…
एक सुंदर और शांत गांव में एक महान ऋषि रहते थे| वह सिर्फ ज्ञानी ही नहीं, बल्कि अत्यंत सरल और करुणामय हृदय वाले व्यक्ति थे। गांव के लोग उनका का बहुत ही सम्मान करते थे। गांव के लोग उन्हें गुरूजी कहकर पुकारते थे और हर दुख-सुख में उन्हीं से मार्गदर्शन लेते थे।
गांव में कोई भी परेशानी हो — चाहे खेतों की बात हो या मन की उलझनों की — गुरूजी के पास हर सवाल का उत्तर होता था। लोग उन्हें मानते ही नहीं, महसूस करते थे कि वे किसी देवता से कम नहीं।
एक दिन…
एक युवक, जो जीवन में हमेशा उलझा-उलझा रहता था, गुरूजी के पास आया। उसकी आंखों में बेचैनी थी, और चेहरे पर कई सवाल।
उसने झुककर प्रणाम किया और बोला,
“गुरूजी, क्या मैं एक सवाल पूछ सकता हूं?”
गुरूजी ने मुस्कराते हुए कहा,
गुरूजी ने मुस्कराते हुए कहा,
युवक बोला,
“मैं खुश रहना चाहता हूं… लेकिन समझ नहीं आता, आखिर ख़ुशी का रहस्य क्या है?”
गुरूजी थोड़ी देर चुप रहे, फिर बोले —
“अगर सच में जानना चाहते हो, तो तुम्हें मेरे साथ जंगल चलना होगा।”
युवक को यह बात थोड़ी अजीब लगी, लेकिन युवक ख़ुशी का राज़ जानना चाहता था, इसलिए उसने तुरंत हामी भर दी!
अगली सुबह…
जब चारों ओर हल्का उजाला छा रहा था और पक्षियों की मीठी चहचहाहट सुनाई दे रही थी, युवक गुरूजी के साथ जंगल की ओर निकल पड़ा।
रास्ते में कुछ ही दूर जाने के बाद, गुरूजी को एक बहुत भारी पत्थर रास्ते के किनारे पड़ा हुआ दिखा ।
गुरूजी ने उस युवक की ओर इशारा करते हुए कहा —
“इस पत्थर को उठा लो और अपने साथ लेकर चलो।”
युवक थोड़ा चौंका, लेकिन गुरूजी का आदेश मानते हुए उसने पत्थर उठा लिया।
शुरू में सब ठीक था, लेकिन थोड़ी देर बाद हाथों में दर्द होने लगा। फिर कुछ और समय बीता, तो उसकी कमर और कंधों में खिंचाव महसूस होने लगा। पसीना बहने लगा और हर कदम भारी लगने लगा।
काफ़ी देर तक पत्थर ढोने के बाद, आखिरकार युवक बोल पड़ा —
“गुरूजी… अब मुझसे नहीं सहा जाता। दर्द बहुत हो रहा है।”
गुरूजी शांत स्वर में बोले —
“तो फिर इसे ज़मीन पर रख दो।”
जैसे ही युवक ने पत्थर नीचे रखा, उसे एक अजीब सी राहत महसूस हुई। जैसे उसका सारा बोझ एक ही पल में उतर गया हो। वह हल्का-सा मुस्कराया।
तभी गुरूजी ने कहा —
“यही है तुम्हारी ख़ुशी का रहस्य!”
युवक ने हैरानी से पूछा —
“गुरूजी, मैं समझा नहीं…”
गुरूजी ने बड़े शांत स्वर में समझाया:
“ये पत्थर तुम्हारे दुखों की तरह है। जब तुमने थोड़ी देर के लिए इसे उठाया, तो हल्का दर्द हुआ। जब ज्यादा देर तक उठाए रखा, तो वो दर्द बढ़ता गया और असहनीय हो गया।”
“ठीक वैसे ही, जब हम अपने जीवन के दुख, पछतावे, और परेशानियों को बार-बार सोचते रहते हैं और उन्हें अपने मन में ढोते रहते हैं, तो वे हमें भीतर ही भीतर तोड़ने लगते हैं।”
“अगर तुम सच में खुश रहना चाहते हो, तो जीवन के इन भारी पत्थरों को समय रहते नीचे रखना सीखो।”
“दुख आना स्वाभाविक है, लेकिन उसे पकड़कर रखना, उसे हर पल अपने साथ ढोते रहना — यही तुम्हारी ख़ुशी की सबसे बड़ी बाधा है।”
“युवक की आंखें नम हो गईं। अब उसे समझ आ गया था कि असली ख़ुशी बाहर नहीं, भीतर होती है — उस पल हम अपने मन का बोझ छोड़ना सीख जाते हैं।”
सीख/Moral:
दुख और परेशानियां जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें पकड़कर रखना हमारी अपनी पसंद होती है।
अगर हम हर बोझ समय रहते छोड़ना सीख लें, तो जीवन स्वतः हल्का और खुशहाल हो जाता है।


