एक बार की बात है। एक युवक, जो जीवन में सफलता पाने की तीव्र इच्छा रखता था, महान दार्शनिक गुरु वेदांत के पास पहुँचा। उसकी आँखों में उम्मीद थी, मन में सवाल – “गुरुजी, सफलता का रहस्य क्या है? मैं कैसे सफल हो सकता हूँ?”
गुरु वेदांत ने उसकी आँखों में झाँका, मुस्कुराए और बोले,
“कल सुबह नदी किनारे मिलो। वहाँ तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिलेगा।”
अगली सुबह सूरज की पहली किरणों के साथ युवक नदी किनारे पहुँचा। हल्की ठंडी हवा बह रही थी, पानी सुनहरी धूप में चमक रहा था। कुछ ही देर में गुरु वेदांत भी आ पहुँचे — शांत, संयमित, और रहस्यमय मुस्कान लिए हुए।
उन्होंने कहा, “चलो, नदी में उतरते हैं।”
युवक थोड़ा हिचकिचाया, पर गुरु वेदांत के साथ पानी में उतर गया। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, पानी घुटनों से कमर तक, और फिर छाती तक पहुँच गया। अचानक, जब पानी उसकी नाक तक पहुँचा, गुरु वेदांत ने बिना कुछ कहे उसका सिर पकड़कर पानी में डुबो दिया!
युवक बुरी तरह हिलने लगा, छटपटाया, पैर मारने लगा — साँस के लिए संघर्ष करता हुआ। उसके फेफड़े जल रहे थे, सिर फटने जैसा महसूस हो रहा था। लेकिन गुरु वेदांत का हाथ मजबूत था। कुछ पल ऐसे बीते जैसे एक-एक क्षण सदियों में बदल गया हो।
और फिर, गुरु वेदांत ने उसे छोड़ दिया। युवक ने झटके से सिर बाहर निकाला, हाँफता हुआ हवा के लिए लपका। उसने गहरी, तेज़ साँसें लीं — जैसे हर साँस उसे ज़िंदगी वापस दे रही हो।
जब वह थोड़ा शांत हुआ, गुरु वेदांत ने शांत स्वर में पूछा,
“जब तुम पानी में थे, तब तुम्हारी सबसे बड़ी इच्छा क्या थी?”
युवक ने बिना सोचे जवाब दिया,
“साँस लेना… बस साँस लेना चाहता था!”
गुरु वेदांत ने मुस्कुराते हुए कहा,
“यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है।
जब तुम सफलता को उतनी ही तीव्र इच्छा से चाहोगे, जितनी तीव्र इच्छा तुमने उस साँस के लिए महसूस की थी,
तो सफलता तुम्हारे सामने सिर झुका देगी।”
उस दिन उस युवक ने न सिर्फ़ एक पाठ सीखा — उसने जीवन का सार समझा।
अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो, तो इसे किसी ऐसे व्यक्ति से ज़रूर साझा करो जो अपने सपनों के लिए संघर्ष कर रहा है।
और खुद से वादा करो — अगली बार जब हार मानने का मन करे, तो याद रखना कि तुम्हारी सफलता तुम्हें उसी तीव्रता से पुकार रही है, जैसे उस युवक को अपनी साँस पुकार रही थी।


