“जब से वो गुड़िया आई है, मेरी बेटी की नींद उड़ गई है… उसकी आँखों में अब बस डर ही डर है।”
दिल्ली के एक शांत कॉलोनी में रहने वाला वर्मा परिवार अपनी सीधी-सादी ज़िंदगी में खुश था। लेकिन सब कुछ बदल गया, जब उनकी छह साल की बेटी आर्या को उसके जन्मदिन पर एक अनोखी गुड़िया मिली।
एक अनोखा तोहफा
आर्या के जन्मदिन पर उसकी माँ सुषमा ने घर पर एक छोटा सा समारोह रखा था। पड़ोस की एक बूढ़ी महिला, श्रीमती जौहरी, भी आईं। उन्होंने आर्या को एक पुराना लकड़ी का डिब्बा दिया और कहा:
“बहुत खास गुड़िया है ये… इसे संभालकर रखना।”
गुड़िया सच में अलग थी — सुनहरे बाल, नीली आँखें और लाल होंठ। आर्या उसे देखकर बहुत खुश हुई और उसी रात उसे अपने पास रखकर सो गई।
डर की शुरुआत
उस रात आधी रात सुषमा को नींद मे एक धीमी सी हँसी की आवाज़ सुनाई दी और उसकी नींद खुल गई। उसे लगा जैसे कोई बच्ची पास में हँस रही हो। वह घबरा कर आर्या के कमरे में गई।
आर्या सो रही थी, लेकिन गुड़िया उसकी छाती पर रखी थी — आँखें खुली हुई।
अगले कुछ दिनों में अजीब-अजीब बातें होने लगीं: रसोई में बर्तन अपने आप गिरने लगे, आर्या रात में अचानक चीखने लगी, और हर बार गुड़िया उसके पास पाई जाती।
सच सामने आने लगा
शुरू में सुषमा ने इन बातों को इत्तेफाक समझा। लेकिन एक दिन आर्या ने डरते हुए कहा:
“माँ, रिया (गुड़िया) कहती है कि अगर मैं उसके साथ न खेलूं… तो वो गुस्सा हो जाएगी।”
सुषमा का दिल काँप गया। वो तुरंत श्रीमती जौहरी से मिलने गई, लेकिन पता चला — वो दो दिन पहले ही गुजर चुकी थीं।
उनके पोते ने बताया,
“दादी उस गुड़िया को हमेशा तिजोरी में बंद रखती थीं। कहते थे, दादाजी लंदन से लाए थे, लेकिन उसमें कुछ गड़बड़ थी। एक बार मैंने उसे छू लिया था, फिर दो दिन तक तेज़ बुखार में पड़ा रहा।”
तंत्र-मंत्र का सहारा
डर अब बर्दाश्त के बाहर था। सुषमा ने एक पंडित को बुलाया। उन्होंने गुड़िया को देखकर ही कहा:
“ये कोई साधारण खिलौना नहीं है… इसमें किसी आत्मा का वास है।”
पंडित ने तंत्र क्रिया कराई। गुड़िया पर गंगाजल डाला गया और हनुमान चालीसा का पाठ किया गया। जैसे ही गुड़िया को जल में डुबोया गया, उसने अपने आप आँखें बंद कर लीं। यह देख वहाँ मौजूद सभी लोगों की रूह काँप गई।
अंत… या शायद नहीं?
पंडित जी ने सलाह दी कि गुड़िया को किसी सुनसान श्मशान में दफना दिया जाए, और उसका स्थान किसी को न बताया जाए। सुषमा ने वैसा ही किया। धीरे-धीरे आर्या की हालत सुधरने लगी। लेकिन कुछ हफ्तों बाद, एक रात सोते समय आर्या ने माँ से पूछा:
“माँ… रिया कब वापस आएगी?”
सुषमा सन्न रह गई…
सीख/Moral
हर चीज़ जो सुंदर दिखे, वो मासूम नहीं होती। डर सिर्फ अंधेरे में नहीं — कभी-कभी खिलौनों की मुस्कान में भी छिपा होता है।क्या आपने अपने बच्चों के खिलौनों को ध्यान से देखा है?
क्योंकि अगली बार जब वो कहें —
“माँ, ये खुद चलकर आया…” तो हो सकता है… वो बस एक कल्पना न हो।
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