“जहाँ शब्द नहीं, वहाँ शांति नहीं; और जहाँ बुद्धि है, वहाँ समाधान ज़रूर होता है।”
बहुत समय पहले की बात है, जब जानवर न केवल बोलते थे बल्कि सोचते भी थे। उनकी सोच इंसानों से भी कहीं अधिक गहरी और सूझ-बूझ वाली होती थी। उस समय की एक छोटी सी झील के किनारे की कहानी आज हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, जो एक कछुए की समझदारी और शांति से भरी बुद्धिमानी की मिसाल है।
झील के किनारे की दुनिया
एक सुन्दर झील के किनारे पर मंदबुद्धि नाम का एक कछुआ रहता था। नाम भले ही उसके लिए “मंदबुद्धि” रखा गया हो, पर वास्तव में वह बेहद समझदार, शांत और अनुभव से परिपूर्ण था। हर सुबह वह धीरे-धीरे चलकर झील के किनारे बैठता, आसपास की प्रकृति को निहारता और जीवन की गहराइयों में डूब जाता।
मंदबुद्धि के साथ वहां दो पक्षी भी रहते थे — संजीव और चिरपि। दोनों भाई थे, लेकिन स्वभाव में बिलकुल भिन्न। संजीव गंभीर, संयमित और अनुशासित था, जबकि चिरपि चंचल, नटखट और बातूनी।
जब झगड़ा बढ़ने लगा
एक दिन झील के पास एक मीठा और रसीला फल गिरा। संजीव और चिरपि दोनों ही उस फल को पाने के लिए आगे बढ़े।
“मैंने इसे सबसे पहले देखा!” चिरपि ने चिल्लाकर कहा।
“नहीं, मैं पहले पहुँचा हूँ,” संजीव ने कड़ा जवाब दिया।
धीरे-धीरे बहस का स्वर तेज होता गया। दोनों पक्षी आपस में तू-तू मैं-मैं करने लगे। उनकी आवाज़ इतनी तेज हो गई कि झील का शांत वातावरण गड़बड़ाने लगा।
झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों भाई एक-दूसरे को अपशब्द तक कहने लगे। पास बैठा मंदबुद्धि कछुआ यह सब चुपचाप देख रहा था।
कछुए की चुप्पी में छिपी समझदारी
मंदबुद्धि वहीं बैठा सब देख-सुन रहा था। उसने कुछ नहीं कहा। वह जानता था कि इस समय बोलना उल्टा असर कर सकता है। लेकिन जब उसने महसूस किया कि दोनों भाई अपने झगड़े में गहरी खाई खोद रहे हैं, तो उसने धीरे-धीरे अपना मुँह खोला और बोला:
“क्या मैं कुछ कहूँ?” उसकी आवाज़ धीमी और शांत थी।
दोनों पक्षी उसकी आवाज़ सुनकर थोड़ी देर के लिए चुप हो गए। मंदबुद्धि ने फिर मुस्कुराते हुए कहा:
“अगर तुम दोनों एक फल के लिए अपना रिश्ता खो देते हो, तो सोचो, क्या सारे फल तुम्हारे पास हों और कोई तुम्हारा साथ न हो, तो क्या तुम्हारी जीत सचमुच में जीत होगी?”
यह बात सुनकर दोनों पक्षी सोच में पड़ गए।
समस्या का हल: संयम और सहयोग
कछुए ने आगे कहा:
“आओ, इस फल को आधा-आधा बाँट लें। और भविष्य में फल लाने की जिम्मेदारी बारी-बारी से निभाएँ। इससे तुम्हारा झगड़ा खत्म होगा और दोस्ती बनी रहेगी।”
संजीव ने इस सुझाव पर ध्यान से विचार किया और सहमति में सिर हिला दिया। चिरपि ने अपने पंख फड़फड़ाए और धीरे से बोला, “मुझे माफ़ कर दो भाई, शायद मैं ही ज़्यादा बोल गया था।”
दोनों ने फल को बाँटा और फिर कछुए के पास आकर सिर झुकाया। इस तरह मंदबुद्धि की समझदारी ने दोनों भाईयों के बीच एक नई दोस्ती की नींव रख दी।
शांति और प्रेम की वापसी
उस दिन से झील फिर से शांत हो गई। मंदबुद्धि अपने हमेशा के शांत स्वभाव के साथ मुस्कुराता रहा। संजीव और चिरपि की दोस्ती पहले से भी मजबूत हो गई।
अब वे एक-दूसरे की बात ध्यान से सुनते, समझते और मदद करते। झील पर जब भी कोई नया जानवर आता और पूछता, “तुम्हारे बीच इतनी शांति कैसे रहती है?”
दोनों भाई हँसकर कहते, “क्योंकि हमने सुनना सीखा, उस कछुए से जो बोलता कम है, लेकिन समझता बहुत है।”
कहानी की सीख/Moral
“सच्ची बुद्धिमानी तेज़ बोलने में नहीं, बल्कि सही वक्त पर चुप रहने और समझदारी से समाधान निकालने में होती है।”
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में मतभेद आएंगे, लेकिन संयम, संवाद और समझदारी के साथ हम हर समस्या का हल निकाल सकते हैं। छोटे-छोटे झगड़े रिश्तों को कमजोर कर सकते हैं, लेकिन सही बातचीत और धैर्य से रिश्ते और भी मजबूत बनते हैं।
पंचतंत्र की यह कहानी क्यों है खास?
- यह कहानी बच्चों और बड़ों दोनों के लिए अत्यंत शिक्षाप्रद है।
- यह जीवन के व्यावहारिक पक्ष को बड़ी सरलता से समझाती है।
- झगड़ों के बीच समाधान निकालने के लिए संवाद और संयम की आवश्यकता को उजागर करती है।
- यह हिंदी नैतिक कहानियों के खजाने में एक अनमोल रत्न है।
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