एक महत्त्वपूर्ण सीख — महात्मा बुद्ध की एक सच्ची घटना से
बहुत साल पहले की बात है, महात्मा बुद्ध एक विशाल बरगद के पेड़ के नीचे बैठे थे। शांत, स्थिर और पूरी तरह से वर्तमान क्षण में स्थित। उनकी उपस्थिति इतनी शांत थी कि आसपास का वातावरण भी जैसे उनके साथ ध्यान कर रहा हो।
उसी समय, एक व्यक्ति वहाँ पहुँचा — गुस्से से तमतमाया हुआ।
उसने आते ही बुद्ध को अपशब्द कहने शुरू कर दिए। वो चिल्लाया, बुरा-भला कहा, हर संभव गाली दी जो उसे आती थी। उसका चेहरा लाल था, आंखें क्रोध से भरी हुईं।
लेकिन बुद्ध?
वो उसी तरह शांत बैठे रहे, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
ना उनके चेहरे पर गुस्सा था, ना कोई प्रतिक्रिया। बस वही शांत मुस्कान, वही करुणा।
यह देखकर वो व्यक्ति और अधिक भड़क गया। और
थक हारकर आखिरकार वह व्यक्ति चिल्लाया:
“मैं तुम्हें कब से गालियाँ दे रहा हूँ, और तुम हो कि कुछ बोल ही नहीं रहे! क्या तुम्हें फर्क ही नहीं पड़ता?” उसने चिल्लाकर पूछा।
बुद्ध ने धीरे से आँखें खोलीं। उनकी नज़र में कोई गुस्सा नहीं, सिर्फ़ अपनापन था।
“भाई,” उन्होंने शांत स्वर में कहा,
“अगर कोई तुम्हें कोई उपहार दे — और तुम उसे लेने से इंकार कर दो, तो वह उपहार किसके पास रह जाता है?”
व्यक्ति कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला —
“अगर मैं ना लूँ, तो जाहिर है कि वो उपहार उसी के पास रह जाएगा जिसने दिया है।”
बुद्ध मुस्कराए —
“बस, यही तुम्हारी गालियों के साथ हुआ है। तुम उन्हें लाए, लेकिन मैंने उन्हें स्वीकार नहीं किया।”
“इसलिए अब वे तुम्हारे पास ही रह गई हैं।”
वह व्यक्ति अब बिल्कुल शांत था। उसकी आँखों में शर्म और पश्चाताप था। उसके अंदर कुछ बदल गया था। उसने धीरे से सिर झुकाया और कहा:
“मैंने आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। कृपया मुझे माफ़ कर दीजिए,”
बुद्ध ने करुणा से उसकी ओर देखा और बोले —
“जब दिल में क्रोध नहीं होता, तो माफ करना कभी मुश्किल नहीं होता।”
सीख/Moral:
दूसरों का व्यवहार हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हम कैसे प्रतिक्रिया दें, ये पूरी तरह हमारे हाथ में है।
अगर आप नकारात्मकता को स्वीकार ही नहीं करते, तो वह आपको छू भी नहीं सकती।असली ताकत गुस्से में जवाब देने में नहीं, बल्कि शांति बनाए रखने में है।
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