बहुत समय पहले, एक गाँव में मोहन नाम का व्यक्ति रहता था। वह गाँव का सबसे अमीर व्यक्ति था, लेकिन उसके दिल में हमेशा एक चिंता रहती थी—उसका इकलौता बेटा भानु हमेशा बीमार रहता था।
भानु के पेट में अजीब-सा दर्द रहता, और वह दिन-ब-दिन कमज़ोर होता जा रहा था। असल में, उसके पेट में एक साँप ने अपना घर बना लिया था, पर किसी को इसका पता नहीं था। मोहन ने अनगिनत वैद्य और डॉक्टर बुलाए, लेकिन कोई भी इलाज नहीं कर पाया।
परेशान होकर भानु एक दिन गाँव छोड़कर शहर चला गया। वहाँ उसने छोटे-मोटे काम शुरू किए और रात को मंदिर में सोने लगा।
घमंडी व्यापारी
उसी शहर में बीरेंद्र नाम का एक धनी व्यापारी रहता था। उसके पास इतनी दौलत थी कि लोग उसे शहर का राजा कहते थे। उसकी दो बेटियाँ थीं—बड़ी सुशीला और छोटी ललिता।
हर सुबह दोनों बहनें अपने पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लेतीं और अपने दिन की शुरुआत करती थीं।
सुशीला मीठे स्वर में कहती…
“पिताजी, आपके कारण मुझे संसार के सभी सुख मिले हैं।”
बीरेंद्र गर्व से मुस्कुराता।
पर ललिता बस चुपचाप प्रणाम करती और मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करती।
एक दिन बीरेंद्र ने पूछा,
“ललिता, तू प्रणाम करते समय कुछ बोलती क्यों नहीं?”
ललिता ने विनम्रता से उत्तर दिया,
“पिताजी, मैं मन ही मन उस ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ, जिसने मुझे आपका आशीर्वाद दिया।”
बीरेंद्र का चेहरा सख़्त हो गया।
“ईश्वर-वश्वर कुछ नहीं होता! ये सब धन मैंने अपने परिश्रम से पाया है।”
ललिता ने शांत स्वर में उत्तर दिया,
“परिश्रम भी उसी का दिया हुआ आशीर्वाद है, पिताजी। उसकी कृपा के बिना मेहनत भी व्यर्थ हो जाती है।”
यह सुनकर बीरेंद्र क्रोधित हो उठा:
“अगर तुझे अपने ईश्वर पर इतना भरोसा है, तो देखता हूँ, तेरा भगवान तेरे लिए क्या करता है।”
बीरेंद्र ने अपने नौकरों से कहा:
“इस लड़की का विवाह किसी भिखमंगे से करवा दो, ताकि इसकी औकात समझ में आ जाए।”
नौकरों ने खोज शुरू की। जंगल में एक पेड़ के नीचे भूखा-प्यासा सोया हुआ भानु मिला। वह सचमुच भिखारी जैसा लग रहा था। वे उसे पकड़कर लाए, और बीरेंद्र ने ललिता का विवाह भानु से करवा दिया।
सुशीला ने ताना मारा:
“देखा, पिताजी को क्रोधित करने का यही परिणाम है। अब उनसे क्षमा माँग लो।”
ललिता ने दृढ़ता से कहा:
“सत्य का साथ छोड़कर केवल सुख पाने के लिए झूठ बोलना, ये मेरे संस्कार नहीं हैं।
अगर मेरे भाग्य में कष्ट लिखा है, तो कोई रोक नहीं सकता।”
बीरेंद्र ने कुछ पैसे दिए और उन्हें घर से निकालते हुए कहा:
“अब मुझे कभी अपना मुँह मत दिखाना!”
जंगल का रहस्य
भानु और ललिता जंगल की और चल पड़े। कुछ दूर जाने पर उन्हें एक तालाब मिला। प्यास बुझाकर दोनों थकान से वहीं सो गए।
अचानक ललिता की आँख खुली। उसने देखा—भानु के मुँह से एक साँप बाहर निकलकर पास के बिल में झाँक रहा था। बिल के अंदर से दूसरा साँप बाहर आया। दोनों आपस में फुफकारते हुए बातें करने लगे।
बिल वाला साँप: “तू इस भोले भाले युवक को क्यों सताता है? यह एक अमीर घर का बेटा है, तेरे कारण इसे घर छोड़ना पड़ा!”
भानु के पेट वाला साँप: “और तू? तू खजाने पर बैठा है, उसे किसी को पाने नहीं देता!”
बिल वाला साँप: “मैं एक पुराने राजा का वचन निभा रहा हूँ। लेकिन अगर कोई मेरे बिल में दो बाल्टी गरम पानी डाल दे, तो मैं मर जाऊँगा, और खजाना उसका हो जाएगा।”
पेट वाला साँप: “हा! और अगर कोई पुराने चावल और सरसों का काढ़ा बनाकर इस लड़के को पिला दे, तो मैं मर जाऊँगा!”
ललिता सब ध्यान से सुनती रही। वह समझ गई कि भानु को बचाने और खजाना पाने का यही उपाय है।
मुक्ति और खजाना
ललिता तुरंत पास के गाँव गई और मदद माँगी। कुछ ही देर में लोग पुराने चावल, सरसों, और गरम पानी लेकर आ गए।
ललिता ने काढ़ा भानु को पिलाया। थोड़ी देर बाद उसके मुँह से साँप निकलकर तड़पते हुए मर गया। फिर गरम पानी बिल में डाला, और दूसरा साँप भी बाहर आकर मर गया।
जब उन्होंने बिल खोदा, तो वहाँ सोने-चाँदी और रत्नों का ढेर मिला।
भानु, वर्षों बाद, हल्कापन महसूस कर रहा था। उसने ललिता से कहा,
“अगर तुम न होतीं, तो शायद मैं कभी ठीक न हो पाता।”
दोनों ने खजाना इकट्ठा किया और भानु के गाँव लौट आए। वहाँ उन्होंने संपत्ति का उपयोग सबकी भलाई में किया और सुखी जीवन बिताया।
सीख/Moral
“रहस्य ही सुरक्षा है” — कई बार अपने राज़ को सही समय तक छिपाकर रखना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी होती है।हर बात हर किसी से न कहें; सही अवसर और सही व्यक्ति को ही सच्चाई बताएँ।
याद रखिए: “रहस्य ही सुरक्षा है।”
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