रक्षा बंधन आने ही वाला था। सृष्टि ने हर बार की तरह इस बार भी बड़े प्यार से राखियाँ खरीदी थीं—अपने भाई अर्जुन के लिए, जो पिछले दो साल से सरहद पर तैनात था।
उसने एक चिट्ठी भी लिखी थी—शिकायतें, यादें, हँसी, और दुआओं से भरी। हर शब्द में उसका दिल था।
उसे भरोसा था कि जैसे हर साल अर्जुन की चिट्ठी आएगी, इस बार भी आएगी। लेकिन जब डाकिया आया, तो लिफ़ाफ़ा कुछ अलग था। सादा, मोहरबंद, सेना के निशान वाला।
सृष्टि का दिल धड़कने लगा। हाथ काँपते हुए लिफ़ाफ़ा खोला। अंदर एक चिट्ठी थी:
“मेरी प्यारी बहन सृष्टि के नाम… तुम्हारा भाई अर्जुन…”
चिट्ठी:
प्रिय सृष्टि,
जब तुम ये चिट्ठी पढ़ रही होगी, मैं शायद इस दुनिया में नहीं होऊँ।
लेकिन एक बात जान लो—तेरा भाई आख़िरी साँस तक तुझे याद करता रहा।
तुम्हारी हर राखी मैंने सीने से लगाकर रखी थी। वो धागा नहीं था, मेरा हौसला था। जब गोलियाँ चलतीं, जब बर्फ़ हड्डियाँ काटती, तब तेरी चिट्ठी की वो एक पंक्ति मुझे बचाए रखती:
“तू जीत के आना, भैया।”
मैं लौट नहीं सका, लेकिन डरना मत। मेरी शहादत तेरे सिर का ताज बनेगी, शर्म नहीं।
तूने कहा था न—“भैया, तू मेरा हीरो है”?
अगर कभी लगे कि तेरा हीरो चला गया, तो आसमान की ओर देखना। मैं हवा बनकर तेरे साथ हूँ।
जब भी राखी बाँधना, मुस्कुराकर बाँधना। मैं वादा करके गया था—“तेरे लिए जान भी कुर्बान”।
माँ को कहना कि उनका बनाया खाना सबसे ज़्यादा याद आता था।
और बाबा को कहना, उनका हर एक उसूल मेरे अंदर जिंदा था—तभी अर्जुन, देश के लिए अर्जुन बन सका।
और हाँ… तू लिखना मत छोड़ना।
तेरी कहानियाँ मुझे जिंदा रखती थीं। अब वो कहानियाँ उन बच्चों को सुनाना, जिनके भाई अब नहीं हैं।
और एक बात…
मेरे जाने से अपनी ज़िंदगी रोक मत देना।
तू आगे बढ़, कामयाब बन, और ऐसा जी कि मैं ऊपर से तुझ पर गर्व कर सकूँ।
तेरा भाई,
अर्जुन
(भारतीय सेना)
सीख/ Moral:
शहीद सिर्फ मैदान-ए-जंग में नहीं मरते, वो चिट्ठियों में जिंदा रहते हैं। अगर आपका भाई है, तो उसे बताइए कि आप उसे कितना चाहते हैं। अगर वो दूर है, तो एक चिट्ठी लिखिए। और अगर वो अब नहीं है, तो उसकी कहानी सुनाइए। क्योंकि कुछ रिश्ते—खत्म नहीं होते, बस अमर हो जाते हैं।