Moral Stories, Story

गरीब की ईमानदारी

Posted on August 1, 2025 by anilkm01

दिल्ली की तंग गलियों में….

सुबह का वक्त था। हर कोई अपनी मंज़िल की तरफ भाग रहा था। उस भीड़ में एक दुबला-पतला, सांभले रंग का आदमी अपने रिक्शे के पास खड़ा  था, जिसकानाम रमेश था, चेहरे पर थकान थी, मगर आंखों में एक़ उम्मीद की चमक भी थी।

रमेश एक गरीब रिक्शावाला था। उसकी रोज़ की कमाई से ही घर का खर्च चलता था। घर में बीमार मां थीं, एक बेटी जो पढ़ाई कर रही थी, और खुद रमेश की अपनी ज़िंदगी भी मुश्किलों से भरी थी। उसकी हर सुबह एक नए संघर्ष के साथ शुरू होती थी।

एक सुबह की बात है। रमेश ने एक आदमी को उसके ऑफिस छोड़ा। सवारी को उतारकर जैसे ही वो मुड़ा, उसने देखा कि रिक्शे की सीट पर एक चमड़े का बटुआ पड़ा है।

रमेश ने बटुआ खोला….

अंदर 500-500 के कई नोट थे, क्रेडिट कार्ड, एक आधार कार्ड और कुछ विजिटिंग कार्ड भी थे, बटुए में कुल मिलाकर लगभग 25,000 रुपये थे।

एक पल के लिए उसकी आंखें ठहर गईं… 

उसे याद आया कि घर में राशन नहीं है, बेटी के स्कूल की फीस भी देनी है और मां की दवाइयां भी ख़त्म हो चुकी हैं। और इतने पैसों में तो उसकी सारी परेशानियाँ ठीक हो सकती हैं।

लेकिन तब उसे अपने पिता की बात याद आई—“ईमानदारी सबसे बड़ी दौलत होती है बेटा। जो खोता है, वो पैसा नहीं, वो ज़मीर खोता है।”

रमेश ने तुरंत फैसला ले लिया। रमेश ने आधार कार्ड से नाम पढ़ा—राकेश मेहरा। विज़िटिंग कार्ड पर ऑफिस का पता भी था। रमेश ने तुरंत रिक्शा मोड़ा और उस ऑफिस की तरफ निकल पड़ा।

ऑफिस पहुंचते ही गार्ड ने उसे रोक लिया, लेकिन जब रमेश ने बटुए की बात की तो गार्ड उसे अंदर ले गया। राकेश मेहरा बटुए को देखकर चौंक गए।

OMG “ओह माई गॉड! ये तो मेरा ही बटुआ है! मुझे लगा था, अब कभी नहीं मिलेगा।”

राकेश ने रमेश से पूछा, “तुमने इसे रख क्यों नहीं लिया? इसमें तो काफी पैसे थे।”

रमेश ने मुस्कराकर ज़बाब दिया, “साहब, मेरी गरीबी मुझे मजबूर कर सकती है, लेकिन मेरे संस्कार मुझे गलत नहीं करने देंगे।”

राकेश की आंखें भर आईं। उन्होंने रमेश को गले लगा लिया। उस पल एक अमीर और एक गरीब के बीच सिर्फ इंसानियत खड़ी थी—न कोई जात, न कोई ऊंच नीच, न कोई हैसियत।

राकेश ने रमेश को धन्यवाद देते हुए कुछ पैसे देने चाहे, लेकिन रमेश ने मना कर दिया। पर राकेश ने ज़िद की और कहा, “ये ईनाम नहीं है, ये सम्मान है। इसे अपने बच्चों के लिए रखो।”

रमेश ने झिझकते हुए पैसे ले लिए, लेकिन उसके चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी—एक सच्चा संतोष, जो सिर्फ ईमानदारी से मिलता है।


Moral of the Story:
ईमानदारी और सच्चाई ऐसे गुण हैं जो हालात से बड़े होते हैं। अगर इंसान सच्चा हो, तो दुनिया उसे सलाम करती है।

Leave a Comment