परिचय
ज़िंदगी में जब हालात मुश्किल हो जाते हैं, तो लोग अक्सर हार मान लेते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो मुश्किलों से लड़ते हैं और अपने आत्म-सम्मान को कभी नहीं छोड़ते। यह कहानी एक ऐसे ही छोटे से लड़के की है — जिसका नाम रवि है।
कहानी
दोपहर का time था। गर्मी बहुत थी। शहर की भीड़-भाड़ वाली गलियों में एक 10 साल का बच्चा रवि भूखा-प्यासा घूम रहा था। उसके पैरों में चप्पल नहीं थी, कपड़े पुराने और फटे हुए थे। आंखों में मासूमियत थी, लेकिन चेहरा भूख से थका हुआ लग रहा था।
रवि एक मिठाई की दुकान के सामने जाकर रुका। वहां से समोसे, कचौरी और जलेबियों की खुशबू आ रही थी। उसका पेट जोर-जोर से भूख का एहसास करा रहा था। लेकिन उसकी जेब में एक पैसा तक नहीं था।
काफी देर तक सोचने के बाद, रवि ने हिम्मत करके दुकानदार से कहा:
“भैया, बहुत भूख लगी है। कुछ खाने को मिल सकता है?”
दुकानदार ने बिना कुछ कहे एक समोसा उसकी ओर बढ़ाया। लेकिन रवि ने हाथ पीछे खींच लिया और बोला:
“भैया, अगर आप चाहें तो मैं आपकी दुकान साफ कर सकता हूँ। लेकिन भीख नहीं लूंगा। कुछ काम दे दीजिए, बदले में खाना मिल जाए।”
दुकानदार थोड़ी देर उसे देखता रहा। फिर मुस्कराते हुए बोला:
“अरे वाह! चलो, ये हुई ना बात! ठीक है बेटा, पहले दुकान साफ कर दो। फिर खाना भी मिलेगा और मेहनत की कमाई भी।”
रवि ने पूरे मन से दुकान साफ की — झाड़ू लगाया, कूड़ा फेंका, हर कोना चमका दिया। काम पूरा होने पर दुकानदार ने उसे गर्म समोसे और मिठाई दी, और जाते-जाते एक रुपया भी उसकी हथेली पर रख दिया।
रवि की आंखों में चमक थी — पेट भरने की खुशी तो थी ही, लेकिन उस एक रुपए में जो सम्मान और गर्व मिला, उसकी कोई कीमत नहीं थी।
निष्कर्ष (Conclusion)
इस छोटी सी कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि मुश्किलें चाहे जितनी भी बड़ी क्यों न हों, आत्म-सम्मान सबसे ऊपर होता है। भीख मांगना आसान होता है, लेकिन मेहनत करके कुछ पाना ही असली जीत होती है।
रवि जैसे बच्चे हमें याद दिलाते हैं कि हालात हमें परिभाषित नहीं करते — हमारा नज़रिया करता है।
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